संबोधन और संवेदना की वास्तविकता इन्सान संबोधन से संवेदना के कार्य को कर सकता है| संबोधन एक ऐसा कार्य होता है| जिसमे एक इन्सान कई दुसरे इंसानों को संबोधित करता है या कोई बात बताने की कोशिश करता है, जो कभी दुसरे इंसानों ने उसके बारे में सुना नहीं हो| संबोधन में कभी कभी इन्सान अपनी संवेदना भी व्यक्त कर देता है| संबोधन वैसे तो कई दुसरे कार्यो के लिए भी किया जाता है, जिसमे कोई इन्सान अपने या कई दुसरे इंसानों को कोई बात बताता है| संबोधन बहुत से कार्यो के लिए किया जाता है| समाज कल्याण के कार्यो के लिए एक ऐसे मंच का उपयोग किया गया हो या किया जाता है| जो किसी पद या प्रतिष्ठा से जुडा हो| लेकिन कभी-कभी संबोधन के लिए इन्सान को कई तरह के मंच पर उतरना पड़ता है| संबोधन भी कई तरह के विषय का होता है, जिसके लिए संबोधन जरुरी बन जाता है| संवेदना एक ऐसा कार्य होता है जिसमे कोई इन्सान किसी दुसरे इन्सान को अपनी भावना व्यक्त करता है| जिसमे अधिकतर इन्सान किसी दुसरे इन्सान के दुःख दर्द के लिए अपनी सहानुभूति संवेदना के जरिये व्यक्त करते है| संवेदना देना भी इन्सान के उस संस्कार को दर्शा देता है| जो उसने
जीवन की वास्तविकता वास्तविकता कहते है किसी भी इन्सान का जीवन तभी मिलता है, जब उसने 84 लाख यौनियो को पार किया हो| कई बार पिछले कर्मो के आधार पर भी इंसानी जीवन मिल सकता है| इंसानी जीवन की उम्र करीब 100 वर्ष निर्धारित की गई है, जबकि दुनिया में किसी को नहीं पता की वो अपना जीवन इस दुनिया में कितना बिताएगा| जिसको जीवन मिला, उसको किसी ना किसी तरीके से भोगना ही पढता है चाहे ख़ुशी और कमियाबी से बिता सके, या दुखी और बिना कामियाबी के| ये वो यात्रा है जिसमे चाहे तो सब मिल जाता है और यदि ना चाहे तो कुछ भी नहीं| जीवन की यात्रा में भी कई चरण है जिसको हमें अलग अलग किरदारों में निभाना ही पढता है| जीवन पर विचार जीवन का मिलना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है, हम जीवन की वास्तविकता से जान सकते हैं जिसे हम अन्य जीवित प्राणियों को देखकर समझ सकते हैं। यात्रा में कोई फर्क नहीं पड़ता कि जीवन की यात्रा में वह अपनी रेल को कैसे चलाता है और वह किस तरह से अपनी भूमिका निभाता है। जीवन एक ऐसा ढाँचा है, जिसे समझना हमारे लिए उतना ही ज़रूरी है जितना कि हर उस इंसान को जीना है जो इस जीवन की यात