संबोधन और संवेदना की वास्तविकता इन्सान संबोधन से संवेदना के कार्य को कर सकता है| संबोधन एक ऐसा कार्य होता है| जिसमे एक इन्सान कई दुसरे इंसानों को संबोधित करता है या कोई बात बताने की कोशिश करता है, जो कभी दुसरे इंसानों ने उसके बारे में सुना नहीं हो| संबोधन में कभी कभी इन्सान अपनी संवेदना भी व्यक्त कर देता है| संबोधन वैसे तो कई दुसरे कार्यो के लिए भी किया जाता है, जिसमे कोई इन्सान अपने या कई दुसरे इंसानों को कोई बात बताता है| संबोधन बहुत से कार्यो के लिए किया जाता है| समाज कल्याण के कार्यो के लिए एक ऐसे मंच का उपयोग किया गया हो या किया जाता है| जो किसी पद या प्रतिष्ठा से जुडा हो| लेकिन कभी-कभी संबोधन के लिए इन्सान को कई तरह के मंच पर उतरना पड़ता है| संबोधन भी कई तरह के विषय का होता है, जिसके लिए संबोधन जरुरी बन जाता है| संवेदना एक ऐसा कार्य होता है जिसमे कोई इन्सान किसी दुसरे इन्सान को अपनी भावना व्यक्त करता है| जिसमे अधिकतर इन्सान किसी दुसरे इन्सान के दुःख दर्द के लिए अपनी सहानुभूति संवेदना के जरिये व्यक्त करते है| संवेदना देना भी इन्सान के उस संस्कार को दर्शा देता है| जो उसने
दोस्त और दुश्मन की वास्तविकता वास्तविकता कहते है दुनिया में ना कोई दोस्त बनकर आता है और ना कोई दुश्मन बनकर आता है इन्सान का व्यवहार ही दुसरो को हमारा दोस्त भी बनाता है और दुश्मन भी बनाता है दोस्त की बात करे तो हर इन्सान का कोई ना कोई दोस्त जरुर होता है चाहे वो दोस्त अच्छा हो या बुरा हो वो दोस्त ही कहलाता है दोस्ती के कर्तव्य को वही दोस्त निभाता है जो दोस्ती को अपने स्वार्थ से ज्यादा महत्व देता हो| दोस्ती के उदाहरण को समझने के लिए हम दुआप्र युग में भगवान् श्री कृष्ण और सुधामा जी की दोस्ती को बताकर कर सकते है ये दोस्ती एक ऐसी दोस्ती थी जिसमे कोई भेदभाव नहीं था जो युगों युगों तक याद की जाएगी| हम उनकी दोस्ती से सीख सकते है की दोस्त हमारे लिए कितना महत्व रखते है| वही दुश्मन की बात की जाए तो जन्म से कोई किसी का दुश्मन नहीं होता सिर्फ और सिर्फ अपना या उसका व्यवहार ही दुश्मनी के लिए जिम्मेदार होता है| दोस्त और दुश्मन का विचार दोस्त तब बनते है जब एक दुसरे के आपस में विचार मिल जाते है और उन विचारो को लेकर एक दुसरे का व्यवहार आपस में अच्छा होता है तो दोस्त बनने की सम्भा