संबोधन और संवेदना की वास्तविकता इन्सान संबोधन से संवेदना के कार्य को कर सकता है| संबोधन एक ऐसा कार्य होता है| जिसमे एक इन्सान कई दुसरे इंसानों को संबोधित करता है या कोई बात बताने की कोशिश करता है, जो कभी दुसरे इंसानों ने उसके बारे में सुना नहीं हो| संबोधन में कभी कभी इन्सान अपनी संवेदना भी व्यक्त कर देता है| संबोधन वैसे तो कई दुसरे कार्यो के लिए भी किया जाता है, जिसमे कोई इन्सान अपने या कई दुसरे इंसानों को कोई बात बताता है| संबोधन बहुत से कार्यो के लिए किया जाता है| समाज कल्याण के कार्यो के लिए एक ऐसे मंच का उपयोग किया गया हो या किया जाता है| जो किसी पद या प्रतिष्ठा से जुडा हो| लेकिन कभी-कभी संबोधन के लिए इन्सान को कई तरह के मंच पर उतरना पड़ता है| संबोधन भी कई तरह के विषय का होता है, जिसके लिए संबोधन जरुरी बन जाता है| संवेदना एक ऐसा कार्य होता है जिसमे कोई इन्सान किसी दुसरे इन्सान को अपनी भावना व्यक्त करता है| जिसमे अधिकतर इन्सान किसी दुसरे इन्सान के दुःख दर्द के लिए अपनी सहानुभूति संवेदना के जरिये व्यक्त करते है| संवेदना देना भी इन्सान के उस संस्कार को दर्शा देता है| जो उसने
मुर्ख और ज्ञानी की वास्तविकता वास्तविकता इन्सान अपने विचार, अपनी सोच, अपने व्यवहार से समाज में अपने आप को मुर्ख या ज्ञानी साबित कर सकता है | वो कितना मुर्ख है या कितना ज्ञानी है ये उसके विचार और व्यवहार और उसकी सोच बता देती है| दुनिया भी बखूबी जानती है की मुर्ख की क्या विशेषता होती है और ज्ञानी की क्या विशेषता होती है| जबकि मुर्ख कभी भी अपने आपको मुर्ख नहीं मानता और ज्ञानी कभी भी अपने आपको ज्ञानी नहीं मानता| दोनों के व्यक्तित्व में बढ़ा अंतर देखने को मिलता है | मुर्ख कभी भी अपनी गलती नहीं स्वीकारता तो ज्ञानी अपनी गलती स्वीकार कर लेता है और उस गलती से सबक लेकर सीखने की कोशिश करता है| मुर्ख भी कही ना कही अपनी मुर्खता का सबूत देता रहता है| जिससे दुनिया की नजर में उसके व्यक्तित्व की पहचान मुर्खता को लेकर की जाती है| जबकि ज्ञानी कभी भी अपने ज्ञान का परिचय नहीं देता दुनिया की नजर में ज्ञानी की पहचान उसके विचार उसकी सोच उसके व्यवहार और उसके ज्ञान के कारण ही बनी रहती है| मुर्ख और ज्ञानी का विचार इन्सान की मुर्खता और ज्ञानता के बीच का अंतर ही सबसे बड़ा कारण है मुर्ख अपनी कई तरह की