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Showing posts from February, 2021

Reality of Addressing and Sensation(संबोधन और संवेदना की वास्तविकता) By Neeraj Kumar

  संबोधन और संवेदना की वास्तविकता इन्सान संबोधन से संवेदना के कार्य को कर सकता है| संबोधन एक ऐसा कार्य होता है| जिसमे एक इन्सान कई दुसरे इंसानों को संबोधित करता है या कोई बात बताने की कोशिश करता है, जो कभी दुसरे इंसानों ने उसके बारे में सुना नहीं हो| संबोधन में कभी कभी इन्सान अपनी संवेदना भी व्यक्त कर देता है| संबोधन वैसे तो कई दुसरे कार्यो के लिए भी किया जाता है, जिसमे कोई इन्सान अपने या कई दुसरे इंसानों को कोई बात बताता है| संबोधन बहुत से कार्यो के लिए किया जाता है| समाज कल्याण के कार्यो के लिए एक ऐसे मंच का उपयोग किया गया हो या किया जाता है| जो किसी पद या प्रतिष्ठा से जुडा हो| लेकिन कभी-कभी संबोधन के लिए इन्सान को कई तरह के मंच पर उतरना पड़ता है| संबोधन भी कई तरह के विषय का होता है, जिसके लिए संबोधन जरुरी बन जाता है| संवेदना एक ऐसा कार्य होता है जिसमे कोई इन्सान किसी दुसरे इन्सान को अपनी भावना व्यक्त करता है| जिसमे अधिकतर इन्सान किसी दुसरे इन्सान के दुःख दर्द के लिए अपनी सहानुभूति संवेदना के जरिये व्यक्त करते है| संवेदना देना भी इन्सान के उस संस्कार को दर्शा देता है| जो उसने

The Reality of fools and the wise(मुर्ख और ज्ञानी की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  मुर्ख और ज्ञानी की वास्तविकता वास्तविकता इन्सान अपने विचार, अपनी सोच, अपने व्यवहार से समाज में अपने आप को मुर्ख या ज्ञानी साबित कर सकता है | वो कितना मुर्ख है या कितना ज्ञानी है ये उसके विचार और व्यवहार और उसकी सोच बता देती है| दुनिया भी बखूबी जानती है की मुर्ख की क्या विशेषता होती है और ज्ञानी की क्या विशेषता होती है| जबकि मुर्ख कभी भी अपने आपको मुर्ख नहीं मानता और ज्ञानी कभी भी अपने आपको ज्ञानी नहीं मानता| दोनों के व्यक्तित्व में बढ़ा अंतर   देखने को मिलता है | मुर्ख कभी भी अपनी गलती नहीं स्वीकारता तो ज्ञानी अपनी गलती स्वीकार कर लेता है और उस गलती से सबक लेकर सीखने की कोशिश करता है| मुर्ख भी कही ना कही अपनी मुर्खता का सबूत देता रहता है| जिससे दुनिया की नजर में उसके व्यक्तित्व की पहचान मुर्खता को लेकर की जाती है| जबकि ज्ञानी कभी भी अपने ज्ञान का परिचय नहीं देता दुनिया की नजर में ज्ञानी की पहचान उसके विचार उसकी सोच उसके व्यवहार और उसके ज्ञान के कारण ही बनी रहती है| मुर्ख और ज्ञानी का विचार इन्सान की मुर्खता और ज्ञानता के बीच का अंतर ही सबसे बड़ा कारण है मुर्ख अपनी कई तरह की

Reality of purpose and enthusiasm(उदेश्य और उत्साह की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  उदेश्य और उत्साह की वास्तविकता वास्तविकता हर इन्सान का कोई ना कोई उदेश्य जरुर होते है और उन उदेश्य के लिए उत्साह भी जरुर होता है उत्साह ही इन्सान को उसके उदेश्य के लिए प्रोत्साहित करता है| यदि इन्सान में अपने उदेश्य के लिए उत्साह ही नहीं होगा तो उसका उदेश्य भी पूरा नहीं हो पाता| इन्सान जीवन में एक ऐसा उदेश्य बनाता है जिसको हासिल करके वो अपने जीवन के लिए जरुरी मानता है| उदेश्य ही इन्सान के जीवन की आधारशिला रखते है| यदि इन्सान के जीवन में कोई उदेश्य नहीं है तो उसके जीवन का कोई आधार नहीं समझा जाता| इन्सान बचपन से बुढापे तक कभी भी अपने जीवन का कोई भी उदेश्य बना सकता है यदि इन्सान का एक उदेश्य पूरा होता है| तो वो अपने दुसरे उदेश्यों की पूर्ति के लिए उत्साह करने लगता है| उदेश्य और उत्साह का विचार उदेश्य वो है जो हम अपने जीवन में हासिल करना चाहते है हर इन्सान के अलग अलग उदेश्य हो सकते है अपने उदेश्य को हासिल करने के लिए उस इन्सान को वो हर संभव और असम्भव कार्य करने पड़ जाते है जो उसके उदेश्य के करीब पहुचाह्तें है लेकिन इन्सान में अपने उदेश्य के लिए उत्साह भी होना जरुरी है यदि उसका अ

Reality of greed and remorse(लालच और पछतावे की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  लालच और पछतावे की वास्तविकता वास्तविकता लालच और पछतावा दो ऐसे भाव है जो इन्सान के मन में ही होते है लेकिन ये भाव कभी किसी को नहीं दिखते| कभी कभी इन्सान कुछ विषय वस्तुओ के लिए लालच रखता है तो कभी कभी ज्यादा लालच इन्सान को पछतावे के लिए मजबूर कर देता है| कहते है लालच उतना ही अच्छा होता है जहाँ तक पूरा हो जाये| यदि ज्यादा लालच हो तो वो पछतावे के लिए हो जाता है दुनिया में कही ना कही, किसी ना किसी का, कोई ना कोई, लालच ज़रुर छुपा होता है और वो अपने उस लालच के लिए लगातार कार्य करता रहता है| कभी उस इन्सान का लालच पूरा हो जाता है| तो कभी कभी इन्सान ज्यादा लालच के भँवर में फंस जाता है| और बाद में उसको पछताना पढता है| लालच और पछतावे का विचार लालच और पछतावे का भाव इन्सान की प्रतिक्रिया को देने पर मजबूर कर देता है| इन्सान को बहुत से विषय वस्तुओ के लिए लालच हो सकता है कोई नाम के लालच में रहता है तो कोई पैसो के लालच में, कोई पद प्रतिष्ठा के लालच में होता है तो कोई दूसरी वस्तुओ के लिए लालच रखता है| पछतावे को भी बहुत सी चीजो व् विषय वस्तुओ के लिए होना पढता है| लालच ख़ुशी के भाव को महसूस कराने

Reality of patience and meditation(धैर्य और ध्यान की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  धैर्य और ध्यान की वास्तविकता कहते है ध्यान भी जभी लगता है जब इन्सान में धैर्य मौजूद हो| यदि इन्सान में धैर्य नहीं होगा तो उसका ध्यान भटकता रहेगा| और वो अपने ध्यान को एकाग्रता नहीं दे सकता| ध्यान को लगाने के लिए इन्सान बहुत सी शांत जगहों को चुन लेता है ताकि उसका ध्यान उस एकाग्रता के साथ लगा रहे जिसमे वो ध्यान लगाना चाहता है| ध्यान लगाने से इन्सान को मानसिक शांति मिलती है इन्सान अपने कार्यो में अच्छे से सोच विचार कर सकता है ध्यान लगाने से इन्सान की अपने कार्यो के प्रति रूचि बढती है और वो उसके कामियाबी के लिए मजबूत हो जाता है| ध्यान कोई वर्तमान समय की खोज नहीं है हिन्दू धर्म में ऋषि मुनि भी ईश्वर के दर्शन करने के लिए ध्यान लगाया करते थे| ताकि उनको ईश्वर के दर्शन आसानी से प्राप्त हो जाये| जबकि इन्सान को धैर्य रखने के लिए बहुत सोचना विचारना पढता है वर्तमान में इन्सान में धैर्य की कमी देखी गई है| इन्सान अपने कार्यो में लगातार धैर्य को खोता जा रहा है वो हमेशा जल्दी में ही रहता है जबकि कार्यो क्षेत्रो में धैर्य के साथ चलना ही उसकी उपलब्धि का रास्ता माना जाता है| धैर्य और ध्यान का विचार

The Reality of worry and discussion(चिंता और चर्चा की वास्तविकता)By Neeraj kumar

  चिंता और चर्चा की वास्तविकता इन्सान अपने जीवन में उसी विषय वस्तु की चर्चा करना ज्यादा पसंद करता है| जिसके बारे में वो ज्यादा चिंता करता है| ऐसा कोई इन्सान नहीं जिसको चिंता ना हो चिंता कुछ भी हो सकती है चिंता बड़ी हो सकती है चिंता छोटी हो सकती है चिंता गंभीर भी हो सकती है चिंता सामान्य भी हो सकती है| चिंता और चर्चा का सम्बन्ध दोनों का ही एक दुसरे से है वही चर्चा करने से किसी भी विषय वस्तु की रूप रेखा पूरी तरह निकल कर आती है जिसकी चिंता उस इन्सान के मन में होती है| चर्चा दो या दो से अधिक इंसानों के बीच में हो सकती है| जबकि चिंता भी कई इंसानों के मन में हो सकती है| चिंता में फंसे इन्सान को चर्चा करने से सही रास्ता मिल जाता है| चर्चा उस विषय वस्तु की जानकारी या उस विषय वस्तु की पूरी रूप रेखा को उजागर करती है| जिसकी चिंता किसी के मन में उजागर हो रही है| ताकि जिस विषय वस्तु की चिंता इन्सान को है| वो चिंता मिट सके चिंता किसी के लिए सही नहीं होती| लेकिन जिसकी चिंता होती है यदि वो चर्चा कर लेता है तो चिंता को आसानी से मिटाया जा सकता है| चिंता और चर्चा का विचार चिंता और चर्चा दो तरह की

Reality of violence and cruelty(हिंसा और हैवानियत की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  हिंसा और हैवानियत की वास्तविकता वास्तविकता   दुनिया में इंसानों के द्वारा हिंसा और हैवानियत की खबरे सुनने को मिलती रहती है इन्सान को अपनी ही इंसानी बस्तियों यानि आपस में ही विरोध प्रदर्शनों में बहुत जगह हिंसा करते हुए देखा गया है| हिंसा जब होती है जब इन्सान अपनी माँगो को मनवाने के लिए मारपीट का सहारा लेता है| कई बार इन्सान अपने विचारो के मतभेदों में फंस जाता है| जब विरोध उत्पन्न होता देखता है तो उसमे हिंसा अपनी जगह बना लेती है| धीरे धीरे हिंसा भी अपना वजूद खोने लगती है और वो हैवानियत बन जाती है| कई बार इन्सान इतना क्रूर सोच का हो जाता है| की वो इंसानियत तक को भुला कर हैवान बन जाता है| और हैवानियत करने में कोई संकोच तक नहीं करता| हैवानियत में इन्सान एक दुसरे इन्सान की हत्या नहीं कर देता तब तक उसको शांति नहीं पहुचती| बहुत बार दुनिया में अलग अलग जगहों पर हिंसाओ में हैवानियत होते हुये देखी गई है|हिंसा किसी में भी हो सकती है घर ,परिवार ,समाज ,देश ,दुनिया में हिंसा हो सकती है। हिंसा और हैवानियत का विचार हिंसा और हैवानियत दोनों शब्दों में बहुत अंतर है हिंसा बातो बातो में आपस या एक