संबोधन और संवेदना की वास्तविकता इन्सान संबोधन से संवेदना के कार्य को कर सकता है| संबोधन एक ऐसा कार्य होता है| जिसमे एक इन्सान कई दुसरे इंसानों को संबोधित करता है या कोई बात बताने की कोशिश करता है, जो कभी दुसरे इंसानों ने उसके बारे में सुना नहीं हो| संबोधन में कभी कभी इन्सान अपनी संवेदना भी व्यक्त कर देता है| संबोधन वैसे तो कई दुसरे कार्यो के लिए भी किया जाता है, जिसमे कोई इन्सान अपने या कई दुसरे इंसानों को कोई बात बताता है| संबोधन बहुत से कार्यो के लिए किया जाता है| समाज कल्याण के कार्यो के लिए एक ऐसे मंच का उपयोग किया गया हो या किया जाता है| जो किसी पद या प्रतिष्ठा से जुडा हो| लेकिन कभी-कभी संबोधन के लिए इन्सान को कई तरह के मंच पर उतरना पड़ता है| संबोधन भी कई तरह के विषय का होता है, जिसके लिए संबोधन जरुरी बन जाता है| संवेदना एक ऐसा कार्य होता है जिसमे कोई इन्सान किसी दुसरे इन्सान को अपनी भावना व्यक्त करता है| जिसमे अधिकतर इन्सान किसी दुसरे इन्सान के दुःख दर्द के लिए अपनी सहानुभूति संवेदना के जरिये व्यक्त करते है| संवेदना देना भी इन्सान के उस संस्कार को दर्शा देता है| जो उसने
नमस्ते और नम्रता की वास्तविकता नमस्ते अभिवादन करने के लिए बोलने वाला एक ऐसा शब्द है, जो सामने वाले को भी नमस्ते बोलने पर मजबूर करता है| जबकि नम्रता एक ऐसा स्वभाव है, जो इन्सान की बोली से पता लगाया जा सकता है की इन्सान का स्वभाव नम्रता से भरा है| नम्रता इन्सान के व्यवहार और व्यक्तित्व को समाज में एक अलग तरह की पहचान देता है| नम्रता स्वभाव से इन्सान बड़े से बड़े क्रोध को भी शांत कर देता है| नम्रता से नमस्ते करने पर सामने वाला इन्सान प्रभावित हो सकता है| नमस्ते मेल मिलाप करने का एक ऐसा शब्द है, जो एक इन्सान को दुसरे इन्सान से आसानी से जोड़ता है| नमस्ते बोलने से रिश्तो की मजबूती को भी बेहतर बनाया जा सकता है| नमस्ते किसी भी इन्सान को बोल सकते है| नमस्ते मिलने की शुरुआत में बोला जाने वाला एक ऐसा शब्द है, जो सामने वाले को अभिवादन देता है| और स्वयं के लिए भी दुसरे के मन में अपने लिए सम्मान की भावना देता है| नम्रता से नमस्ते बोलने से इन्सान के संस्कार और संस्कृति को भी आसानी से पहचान सकते है| नमस्ते किसी भी समय बोल सकते है| नमस्ते बोलने पर छोटो के मन में बड़ो को और बडो के मन में छोटो के प्रति स