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Showing posts from April, 2021

Reality of Addressing and Sensation(संबोधन और संवेदना की वास्तविकता) By Neeraj Kumar

  संबोधन और संवेदना की वास्तविकता इन्सान संबोधन से संवेदना के कार्य को कर सकता है| संबोधन एक ऐसा कार्य होता है| जिसमे एक इन्सान कई दुसरे इंसानों को संबोधित करता है या कोई बात बताने की कोशिश करता है, जो कभी दुसरे इंसानों ने उसके बारे में सुना नहीं हो| संबोधन में कभी कभी इन्सान अपनी संवेदना भी व्यक्त कर देता है| संबोधन वैसे तो कई दुसरे कार्यो के लिए भी किया जाता है, जिसमे कोई इन्सान अपने या कई दुसरे इंसानों को कोई बात बताता है| संबोधन बहुत से कार्यो के लिए किया जाता है| समाज कल्याण के कार्यो के लिए एक ऐसे मंच का उपयोग किया गया हो या किया जाता है| जो किसी पद या प्रतिष्ठा से जुडा हो| लेकिन कभी-कभी संबोधन के लिए इन्सान को कई तरह के मंच पर उतरना पड़ता है| संबोधन भी कई तरह के विषय का होता है, जिसके लिए संबोधन जरुरी बन जाता है| संवेदना एक ऐसा कार्य होता है जिसमे कोई इन्सान किसी दुसरे इन्सान को अपनी भावना व्यक्त करता है| जिसमे अधिकतर इन्सान किसी दुसरे इन्सान के दुःख दर्द के लिए अपनी सहानुभूति संवेदना के जरिये व्यक्त करते है| संवेदना देना भी इन्सान के उस संस्कार को दर्शा देता है| जो उसने

Reality of Namaste and Humility(नमस्ते और नम्रता की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  नमस्ते और नम्रता की वास्तविकता नमस्ते अभिवादन करने के लिए बोलने वाला एक ऐसा शब्द है, जो सामने वाले को भी नमस्ते बोलने पर मजबूर करता है| जबकि नम्रता एक ऐसा स्वभाव है, जो इन्सान की बोली से पता लगाया जा सकता है की इन्सान का स्वभाव नम्रता से भरा है| नम्रता इन्सान के व्यवहार और व्यक्तित्व को समाज में एक अलग तरह की पहचान देता है| नम्रता स्वभाव से इन्सान बड़े से बड़े क्रोध को भी शांत कर देता है| नम्रता से नमस्ते करने पर सामने वाला इन्सान प्रभावित हो सकता है| नमस्ते मेल मिलाप करने का एक ऐसा शब्द है, जो एक इन्सान को दुसरे इन्सान से आसानी से जोड़ता है| नमस्ते बोलने से रिश्तो की मजबूती को भी बेहतर बनाया जा सकता है| नमस्ते किसी भी इन्सान को बोल सकते है| नमस्ते मिलने की शुरुआत में बोला जाने वाला एक ऐसा शब्द है, जो सामने वाले को अभिवादन देता है| और स्वयं के लिए भी दुसरे के मन में अपने लिए सम्मान की भावना देता है| नम्रता से नमस्ते बोलने से इन्सान के संस्कार और संस्कृति को भी आसानी से पहचान सकते है| नमस्ते किसी भी समय बोल सकते है| नमस्ते बोलने पर छोटो के मन में बड़ो को और बडो के मन में छोटो के प्रति स

The Reality of infection and caution(संक्रमण और सावधानी की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  संक्रमण और सावधानी की वास्तविकता संक्रमण से हमेशा सावधानी ही बचाती है| संक्रमण एक ऐसा शब्द है, जो किसी भी इन्सान के मन में डर पैदा कर देता है| किसी भी संक्रमण से इन्सान को उसकी सावधानी ही बचा सकती है| दुनिया में कही भी संक्रमण हो सकता है| संक्रमण कीटाणुओं की एक ऐसी गुत्थी होती है, जो एक के बाद एक इन्सान को उसकी चपेट में ले जाती है| संक्रमण की चपेट में आया हुआ इन्सान कभी बच निकलता है तो कभी इसका शिकार बन जाता है| दुनिया में बहुत से ऐसे संक्रमण है, जो एक इन्सान से दुसरे इन्सान में तेजी से फैल जाते है|   संक्रमण बहुत से पशु पक्षियों से भी हो जाता है| संक्रमण से बचाव की बहुत सारी सावधानियां है जिसको अपना कर इन्सान संक्रमण से फैलने वाले रोगों से बच निकलता है| वैसे तो सावधानी किसी एक रोग के लिए नहीं बल्कि कई रोगों से बचने के लिए करनी होती है| लेकिन कभी कभी दुनिया में कुछ संक्रमण ऐसे भी होते है, जो इन्सान को सावधानी करने का मौका तक नहीं देते| इसलिए यदि इन्सान पहले से उस संक्रमण से बचाव के तौर तरीको को अपनाता है तो उसका जीवन बच सकता है| संक्रमण और सावधानी का विचार संक्रमण और सावधान

Reality of performance and feedback( प्रदर्शन और प्रतिक्रिया की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  प्रदर्शन और प्रतिक्रिया की वास्तविकता प्रदर्शन एक ऐसी क्रिया है जिसको करके इन्सान किसी दुसरे की प्रतिकिर्या प्राप्त करता है| प्रदर्शन अकेले भी होता है और प्रदर्शन कई दूसरे इंसानो के साथ भी होता है। दुनिया में कोई ना कोई  इन्सान किसी ना किसी विषय वस्तु को लेकर अपने प्रदर्शन को दिखा रहा है| प्रदर्शन शब्द को कई तरह की  प्रतिक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है| इन्सान जब कोई ऐसा कार्य करता है जिसमे उसको दुसरे इंसानों की  प्रतिक्रिया मिलती है| इन्सान के जीवन में हर एक समय उसके प्रदर्शन की वास्तविकता को दिखा रहा है| वही  प्रतिक्रिया वो शब्द होते है जिसके लिए इन्सान को दुसरो के द्वारा ही पता चलता है की उसके कार्य का प्रदर्शन  कितना प्रभावित था या नहीं| इन्सान के बहुत से कार्य ऐसे होते है जिसको कई तरह की प्रतिक्रिया मिलती रहती है| प्रदर्शन और प्रतिक्रिया का विचार प्रतिक्रिया का विचार इन्सान के मन में प्रदर्शन को देखकर ही आता है| इन्सान प्रतिक्रिया के शब्दों के लिए किसी  भी  तरह के विचार रख सकता है| हर इन्सान के अलग अलग विचार है और वो किसी   प्रदर्शन के लिए अपनी  प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है

Reality of karma and duty(कर्म और कर्तव्य की वास्तविकता ) By Neeraj kumar

  कर्म और कर्तव्य की वास्तविकता   कर्म और कर्तव्य दोनों शब्दों की वास्तविकता एक दुसरे से बिल्कुल अलग है| कर्म इन्सान के द्वारा किया गया ऐसा कार्य है, जो उसके सुख दुःख का कारण बन जाता है| जबकि कर्तव्य इन्सान का वो कार्य है, जिसको करने के लिए इन्सान उस कार्य को प्राथमिकता देता है और वो उसका कर्तव्य कहलाता है| कर्म और कर्तव्य दोनों शब्द एक जैसे जरुर लगते है, लेकिन इन शब्दों की वास्तविकता में काफी अन्तर मिलता है| कर्म इन्सान के पाप और पुण्य की एक ऐसी श्रेणी को दिखाते है| जिसको इन्सान को अपने सुख और दुःख के जरिये ही भोगना पड़ता है| कभी कभी कर्म इन्सान के जीवन में सभी तरह के सुख दुःख का कारण भी बनते है| तो कर्मो को करना इन्सान की उस वास्तविकता का प्रदर्शन करते है जिसमे पाप और पुण्य की मात्रा में इन्सान को उसका फल मिलता है| कर्मो की उत्पति में इन्सान की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहती है जो इन्सान को कर्म करने पर मजबूर करती है कर्म कितना सही और कितना गलत है, वो ईश्वर के हाथो में होता है| लेकिन जिस ईश्वर ने इन्सान को सोचने समझने की शक्ति प्रदान की है वो यदि गलत कर्म करता है तो वो निसंदेह उस

Reality of festivals and gifts(त्यौहार और तौह्फे की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  त्यौहार और तौह्फे की वास्तविकता त्यौहारों का उत्साह तौह्फे से और ज्यादा बढ़ जाता है| त्यौहार एक ऐसा उत्साह होता है जिसके लिए इन्सान कई दिनों पहले तैयारी करना शुरू कर देता है| साल भर में कई त्यौहारों से इन्सान का मिलना हो जाता है| इन्सान अपने धर्म में आने वाले त्यौहारों के लिए तो उत्साहित होता ही है| लेकिन कभी कभी दुसरे धर्म के आने वाले त्यौहारों के लिए भी अपना उत्साह बना लेता है| दुनिया में कई धर्म है जिनमे अलग अलग त्यौहारों का आना होता है| उस त्यौहार का मज़ा देने और मिलने वाले तौहफो से और अधिक बढ जाता है| जिसके लिए इन्सान अपने पुरे परिवार के साथ त्यौहार का मज़ा लेता है| त्यौहार धर्मो में आने वाले वो विशेष दिन होते है जिसके लिए उस त्यौहार का महत्व बन जाता है| हिन्दू धर्म में कई त्यौहारों का आना होता है जिसमे एक विशेष दिन होता है| जैसे हिन्दुओ का पवित्र त्यौहार दीपावली कार्तिक मॉस की अमावस्या को ही होती है, जिसमे माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा आराधना की जाती है| उसी तरह होली भी एक विशेष दिन की तरह चैत्र मास की पूर्णिमा को ही आती है| उसी तरह इसाई धर्म में क्रिसमस को एक विशेष दिन यानि

Reality of invite and greetings(आमंत्रित और अभिवादन की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  आमंत्रित और अभिवादन की वास्तविकता आमंत्रित और अभिवादन दोनों शब्दों के अर्थ आपस में एक दुसरे से पूरी तरह जुड़े हुये है आमन्त्रण का मिलना किसी के लिए   भी सम्मान को दिए जाने की भावना को दर्शाता है| आमतौर पर जब इन्सान किसी को आमंत्रित करता है तो उसका अभिवादन करना नहीं भुलता| यदि इन्सान किसी को आमंत्रित करता है तो उसका पहला काम आमंत्रित करने वाले का अभिवादन करना होता है| यदि इन्सान ऐसा नहीं करता तो जो इन्सान आमंत्रित हुआ है वो अपने मन में ये महसूस करने लगता है की शायद उसको आमन्त्रण मिलने पर नहीं आना चाहिए था| उस इन्सान को ऐसा महसूस होता है की मेरा अभिवादन सही नहीं हुआ| और वो उसकी नाराजगी का कारण भी हो जाता है| दूसरी तरफ देखते है तो आमन्त्रण मिलने पर इन्सान के मन में ख़ुशी महसूस होती है की जिसको   वो महसूस करता है| आमन्त्रण का मिलना ही सम्मान की भावना को जगाता है| और इन्सान आमन्त्रण को ग्रहण कर अपनी मौजूदगी देता है|   विचार अभिवादन एक ऐसा संस्कार है जिसको सदियों से निभाया जा रहा है जिसको अभिवादन मिलता है| वो अपने मन में गर्वान्वित महसूस करता है| अभिवादन आदि समारोह में देखने को मिलत