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Showing posts from May, 2021

Reality of Addressing and Sensation(संबोधन और संवेदना की वास्तविकता) By Neeraj Kumar

  संबोधन और संवेदना की वास्तविकता इन्सान संबोधन से संवेदना के कार्य को कर सकता है| संबोधन एक ऐसा कार्य होता है| जिसमे एक इन्सान कई दुसरे इंसानों को संबोधित करता है या कोई बात बताने की कोशिश करता है, जो कभी दुसरे इंसानों ने उसके बारे में सुना नहीं हो| संबोधन में कभी कभी इन्सान अपनी संवेदना भी व्यक्त कर देता है| संबोधन वैसे तो कई दुसरे कार्यो के लिए भी किया जाता है, जिसमे कोई इन्सान अपने या कई दुसरे इंसानों को कोई बात बताता है| संबोधन बहुत से कार्यो के लिए किया जाता है| समाज कल्याण के कार्यो के लिए एक ऐसे मंच का उपयोग किया गया हो या किया जाता है| जो किसी पद या प्रतिष्ठा से जुडा हो| लेकिन कभी-कभी संबोधन के लिए इन्सान को कई तरह के मंच पर उतरना पड़ता है| संबोधन भी कई तरह के विषय का होता है, जिसके लिए संबोधन जरुरी बन जाता है| संवेदना एक ऐसा कार्य होता है जिसमे कोई इन्सान किसी दुसरे इन्सान को अपनी भावना व्यक्त करता है| जिसमे अधिकतर इन्सान किसी दुसरे इन्सान के दुःख दर्द के लिए अपनी सहानुभूति संवेदना के जरिये व्यक्त करते है| संवेदना देना भी इन्सान के उस संस्कार को दर्शा देता है| जो उसने

Reality of mistake and misunderstanding(गलती और गलतफहमी की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  गलती और गलतफहमी की वास्तविकता गलती और गलतफहमी दोनों शब्दों का सम्बन्ध एक दुसरे से पूरी तरह से अलग-अलग है| गलती किसी भी इन्सान से हो सकती है, लेकिन गलतफ़हमी किसी-किसी इन्सान को होती है| गलती एक ऐसी वास्तविकता है, जिसमे सुधार की आवश्यकता की जा सकती है और गलती को सुधारा जा सकता है| जबकि गलतफ़हमी एक विचार होता है जिसको ग्रहण कर इन्सान बड़ी-बड़ी गलती कर लेता है| गलतफहमी अक्सर इन्सान की सोच में इस तरह बस जाती है की उसको निकालना बहुत मुश्किल होता है, जब तक गलतफहमी की वास्तविकता पूरी त रह इन्सान के सामने नहीं आती और इन्सान अपनी ही बनाई गई गलतफहमी में इसी तरह फंसा रहता है| कभी गलतफहमी सही भी हो जाती है तो कभी गलतफहमी गलत भी हो जाती है| गलतफहमी कई तरह से इन्सान के दिमाग में रहती है| जिसको निकालना स्वयं उस इन्सान के हाथो में होता है, जिसको गलतफ़हमी हुई है| गलती वो होती है, जो कार्य को सही नहीं ठहराती और गलतफहमी वो होती है जो किसी कार्य के लिए अपनी सोच में सही या गलत के विचार टकराते रहते है| गलती और गलतफहमी का विचार अक्सर इन्सान के जीवन में उससे गलती होती रहती है| कुछ गलती ऐसी होती है जो सा

Reality of Vedic knowledge and science(वैदिक ज्ञान और विज्ञानं की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  वैदिक ज्ञान और विज्ञानं की वास्तविकता वैदिक ज्ञान भारतीय संस्कृति सनातन धर्म के साहित्य है जो प्राचीन भारत में जिनको लिखा गया था जो आज भी भारतीय संस्कृति में ही नहीं बल्कि वैद विश्व के सबसे पुराने साहित्य भी है वैद शब्द का अर्थ ज्ञान भी होता है इस लिए इसको वैदिक ज्ञान कहा जाता है| वैदिक ज्ञान में चार वैदों के आधार पर बताया गया है| जिसमे चारो अलग अलग वैदों का ज्ञान दुनिया के लिये बहुत महत्व रखता है| त्र्ग्वेद, यजुवेद ,सामवेद , अथवर्वेद, चारो वैदिक ज्ञान की वो किताब है| जिसको समझना स्वयं इन्सान के उस अर्थ को समझना है जो जीवन के लिए बहुत महत्व रखते है| जबकि विज्ञानं की बात की जाए तो विज्ञानं वैदिक ज्ञान से बिकुल अलग है भी और नहीं भी विज्ञानं भी उस शब्द को बताने की कोशिश करता है जो हजारो वर्ष पहले वैदिक ज्ञान बता चुके है बस दोनों शब्दों की वास्तविकता दोनों से अलग अलग दिखती है|   विज्ञानं की बात की जाए तो इन्सान की सोच में जो ज्ञान आता है उसको विज्ञानं कह सकते है| विज्ञानं की कोई सीमा नहीं है विज्ञानं कितना और किसी भी तरह से उजागर किया जा सकता है| विज्ञानं उस ज्ञान को दुनिया के सामन

Reality of disaster and emergency(आपदा और आपातकाल की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  आपदा और आपातकाल की वास्तविकता आपदा एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे आपातकाल की जरुरत हो जाती है| दुनिया में कही ना कही कोई ना कोई आपदा देखने को मिल जाती है | या कभी तो आपदा प्रकृति रूप से आकर इंसानों को आपातकाल की स्थिति में ले जाती है तो कभी स्वयं इन्सान आपदा की स्थिति अपने लिए बना लेता है जिसमे आपातकाल की इंसानों को बचने का काम करती है|   आपदा एक ऐसा शब्द है जिसमे इंसानों के जीवन पर खतरा बन जाता है| जो नुकसान के सिवाऐ और कुछ नहीं दिखाती। आपदा में इन्सान अपने जीवन को जोखिम में डालकर दुसरो का जीवन भी बचाता है, आपदा आने के कई सारे प्रकृति रास्ते है| धरती, आकाश, वायु, अग्नि, समुन्द्र जिसमे समय समय पर आपदा आती रहती है। जो समय अनुसार अपनी दस्तक देकर पृथ्वी पर आपातकाल की स्थिति को लाती है|   आपातकाल किसी देश के सविधान में उल्लेखित एक सवैधानिक उपबन्ध होता है, जिसके अंतर्गत कोई सरकार देश पर आये किसी संकट या संभावित संकट के नाम पर देश में लागू करती है| आपातकाल में नागरिको के अधिकार सीमित कर दिए जाते है| कभी कभी देश या राज्य में आपातकाल एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे इन्सान एक दुसरे की मदद

Reality of Equipment and use(उपकरण और उपयोग की वास्तविकता) By Neeraj kumar

  उपकरण और उपयोग की वास्तविकता उपकरण उन्हें कह सकते है जिसका उपयोग इन्सान करता है दुनिया में आज इन्सान का जीवन बिना उपकण के इतना उपयोगी नहीं माना जाता| उपकरण इन्सान की उस जरुरत को कह सकते है जिसका उपयोग इन्सान अपने दैनिक जीवन में ही नहीं बल्कि जीवन भर करता है यदि किसी इन्सान से कहा जाये की वो अपना जीवन बिना किसी उपकरण के बिता दे तो ऐसा मुश्किल ही लगता है| दुनिया में आज के युग को समझे तो ऐसी कोई जगह नहीं होगी जहाँ किसी उपकरण का उपयोग ना होता हो| समुन्द्र्तल से आकाश तक सभी जगह उपकरण का उपयोग हो रहा है| पृथ्वी की सभी दिशाओ पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सभी दिशाओ को जानने के लिए भी उपकरण का ही उपयोग किया जाता है साधारण भाषा में उपकरण को इन्सान वह वस्तु कह सकता है जिसके बिना जीवन का कोई उपयोग नही है| इन्सान के चारो तरफ उपकरण का भंडार है| इन्सान किस उपकरण का उपयोग कर रहा है ये बहुत महत्व रखता है| उपकरण और उपयोग का विचार उपकरण का विचार इन्सान के मन में तभी आता है जब इन्सान उस उपकरण को अपने लिए उपयोगी मानता है या उपयोग करता है| सभी तरह के उपकरण उपयोग करने के लिए ही होते है| आज दुनिया उपकरण

Reality of Information and news(सूचना और समाचार की वास्तविकता) By Neeraj kumar

सूचना और समाचार की वास्तविकता सूचना और समाचार दोनों शब्दों की वास्तविकता में कोई बात एक इन्सान के द्वारा दुसरो को बताई जाती है यानी दोनों शब्दों की वास्तविकता एक दुसरे से पूरी तरह जुडी हुई है| सूचना को इन्सान एक दुसरे को दी जाने वाली जानकारी के आधार से देख सकता है| सूचना   कोई भी इन्सान किसी भी इन्सान को दे सकता है सूचना   सही भी हो सकती है तो सूचना   गलत भी हो सकती है| जबकि समाचार की बात की जाये तो इन्सान को अपने दैनिक जीवन में जितनी भी देश दुनिया की जानकारी प्राप्त होती है, वो समाचारों के द्वारा ही प्राप्त होती है| समाचार सामान्य भी हो सकते है तो समाचार असमान्य भी हो सकते है| समाचार को दिन रात, कभी भी देखा सकता है| समाचार देश दुनिया की सही खबरों को दिखाते है| अलग अलग देश में अलग अलग तरह के समाचार दिखाये जाते है| समाचार से घर बैठे इन्सान को वो जानकारी प्राप्त हो जाती है जो उसको किसी और इन्सान के सूचना देने पर नहीं मिलती| समाचार सभी क्षेत्र की जानकारी दुनिया के सामने लाते है| समाचार, सूचना की प्रमाणिकता को सही तरह से दुनिया के सामने लाते है| सूचना और समाचार का विचार सूचना   और

Reality of Encouragement and competition( प्रोत्साहन और प्रतियोगिता की वास्तविकता) By Neeraj Kumar

  प्रोत्साहन और प्रतियोगिता की वास्तविकता प्रतियोगिता वो है जिसको पार करके इन्सान अपने जीवन में वो मुकाम हासिल करता है जिसके लिए उसको प्रोत्साहित किया गया| प्रतियोगिता एक ऐसा रास्ता है जिसको आज के समय में हर इन्सान को पार करना ही होता है| जो इन्सान अपनी चुनी गई प्रतियोगिता से हार मान लेता है, वो कभी भी अपने चुने गए लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाता| देखा जाए तो आज हर क्षेत्र प्रतियोगिता से भरा पड़ा है| इन्सान के जीवन का हर दिन प्रतियोगिता से होकर ही गुजरता है| जिसमे कभी उसको किसी का प्रोत्साहन मिल जाता है तो कभी उसको कोई प्रोत्साहित करने वाला नहीं मिलता प्रोत्साहित भी एक ऐसा कार्य है जो इन्सान में उसके लक्ष्य के लिए मनोबल को इतना बड़ा देता है की इन्सान अपनी प्रतियोगिता के लिए वो उत्साह महसूस करने लगता है जो उसको किसी के द्वारा प्रोत्साहित करने पर हुआ| प्रोत्साहन और प्रतियोगिता का विचार प्रतियोगिता का विचार करे तो इन्सान के जन्म से ही उसकी प्रतियोगिता शुरू हो जाती है| और मृत्यु तक उसके साथ प्रतियोगिता चलती रहती है| वर्तमान में तो प्रतियोगिता को पार करना इन्सान के जीवन का दैनिक कार्य ब